Thursday, 17 November 2011

हया आँखों की बात आपकी है,
ममता आँखों की माँ की बात है,
देख कर आँखों की दुर्दशा उनकी,
दया न आई ये काफिरों की बात है..

Saturday, 12 November 2011

बेखबर रहते हैं पर बाहोश सदा ही,
दूर से तेरी जुल्फों की छाँव लगती भली,
पास न आओ की हो जाएँ खुद से जुदा,
अब अकेलापन ही ठीक,थी पहले कमी खली,
चुप जिंदगी झेल रहे नही याद की जरूरत,
बची रहने दो थोड़ी सी मुस्कराहट भुनी-जली...!!!
प्रशान्त 

Thursday, 3 November 2011

रखो अपना मरहम अपने पास,
रखो अपने प्यार का अहसास,
बड़ी तकलीफ है तेरे करीब होने में,
कुछ देर खुली हवा में ले लूँ सांस,
अपनेपन की बू बस सांसों में आती है,
बड़ी मुश्किल में हैं हम तेरे आस पास,
हो जायेंगे फिर क़रीब गर रह गए,
साथ जी पाएंगे,मुश्किल है रखना ये आस,
पुरजोर मुस्कुराती हो रकीबों के साथ,
कहाँ मुस्कुराऊं कहाँ हो जाऊं निराश,
रखो अपनी मुहब्बत-मरहम अपने पास...!!!
प्रशान्त 

Wednesday, 2 November 2011

अगर कभी होजाए मेरा एक्सिडेंट,
मेरी डायरी की सब शेर जला देना,
कही पता न चले की हम भी हैं दीवाने,
आखिरी पन्ना पहले जला देना..

बड़ी करीने से रखते हैं खंजर शब्दों के जनाब,
शायद तलवारबाजी के शौक़ीन लगते हैं..

दरमियाँ तेरे मेरे कोई जादू चलता रहता है...
कभी तू मुस्कुराता है कभी हम रो लेते हैं..

सुन कर के अपनी तारीफ,
आईने को भी मुह चिढाती हैं
बड़ी बेरहम हसीना से पाला पड़ा है,
जुल्म करते वक्त मुस्कुराती है..
बड़े बेताब दीखते हैं तजुर्बेकार आज-कल,
कोई ढंग का चेला नही मिलता...
पुरजोर अंदाज से निभाई हम-आपने रस्म अदावत की,
चलो करे प्यार कुछ तो खुबिया मिलती हैं एक-दूजे की..

Tuesday, 1 November 2011

ईश्वर! मै तुम्हारी दुनिया से घृणा करता हूँ,
पर न पाकर कोई आसरा,
जुड़ जाते है हाँथ!
खड़े करता हूँ सवाल तुम्हारे अस्तित्व पे,
कभी करता हु तरफदारी तुम्हारी!
अपनी असफलताओं पे
ठहराता हूँ जिम्मेदार तुम्हे!
कभी भाग्यशाली मानता हूँ खुद को,
जब भी आते हैं उजाले जीवन में!
खुद पर ही इतराता हूँ जब भी,
आती है स्याह जिंदगी में.
तब उजाले सा देख पता हूँ तुम्हे,
पर
ईश्वर! मै तुम्हारी दुनिया से घृणा करता हूँ!!
हिंदुस्तान बचाओ जान,सांसत में जनता सारी है,
हुए आजाद की बुलाये आफत,सबको अब लाचारी है,
चुन-चुन के मारे जाते हैं जो आवाज उठाते हैं,
भ्रस्टाचारी से सन्यासी तक,सबको खाने की बीमारी है!!!

Saturday, 29 October 2011

सीख़ तो लूँ हर सऊर जिंदगी के आपसे साहिब,
डर बस ये है की निशाँ न खो जाये अपने वजूद की...
जिद में ही रहे और उनकी तरफ देखा भी नहीं,
हुजूर थे की कब से आँख मार रहे थे...!!!
प्रशान्त मिश्र
तेरे गुनाहगार की आखिरी ख्वाहिश,
अँधेरी सुनी राह में बस देखते रहना!
गुजर जाये जो कोई खतरनाक मंजर,
बस मुझमे हिम्मत बनाये रखना!
जीलेंगे हम इतना तो गुरुर तेरे दम से है,
बस टूट न जाये हौसला बंधाये रखना!
सुकून,शौक,आराम इन सब की नही तमन्ना,
कोई दुखी न हो मुझसे,बस ये बनाये रखना!
राहों में मेरे चाहें कितनी भी कर दो कांटें,
मेरे अपनों को फूलों की तरह रखना!
कभी जो मुझसे हो जाओ तुम नाराज,
बस मुझमे सुधार की गुंजाइश रखना!!!!
प्रशान्त मिश्र
तनहाइयों का बवंडर और धुंध खामोशियों का,
हर तरफ शोख चेहरा है नकाब फरेबियों का,
बाज़ार उठता है यहाँ किसी की नाकामियों पे,
रोज मुस्कराहट,रोज कत्ल एक नए मुकीम का,
राज कई दफ़न हैं उन गुलाबी खिलखिलाहट में,
नए आशियाने खोज, सिलसिला जलाने उन्हें का..!!!
प्रशान्त मिश्र

उनसे बड़ा डर लगता है

वादों पे मरते देख सबको,
उनसे बड़ा डर लगता है,
बड़ी बेबसी है दिल की,
दूर जाऊं तो अजीब सा लगता है,
कुछ बेताबी-कुछ उलझन सी है,
वो भी बेवफा सा लगता है,
जब भी सोंचू हो जाऊं दूर,
कुछ पेंच फंसा सा लगता है,
गए महीने हैं कुछ दिन बाकि,
कुछ और गुजर जाये ऐसा लगता है,
बिन तेरे तो कुछ ठीक कुछ ख़राब,
कुछ सिर्फ तेरे जैसा लगता है,
टूट न जाये बढीं ये डोर,
डर कुछ ऐसा लगता है..!!!
प्रशान्त मिश्र

आखिरी पन्ना

कुछ अधूरी-अनकही बातें जिनकी जगह इस भरे बाज़ार में कोने में है,वो सपने जो मन ही मन में कुचल दिए जाते हैं इस जीवन की आपा-धापी में,कुछ बातें जो बड़े लोगों को बुरी लगती हैं,कुछ उम्मीदें जो सरे राह खिल्ली उड़ने के काबिल....उन सभी बातों की मिली जुली ये मंच है- आखिरी पन्ना