ईश्वर! मै तुम्हारी दुनिया से घृणा करता हूँ,
पर न पाकर कोई आसरा,
जुड़ जाते है हाँथ!
खड़े करता हूँ सवाल तुम्हारे अस्तित्व पे,
कभी करता हु तरफदारी तुम्हारी!
अपनी असफलताओं पे
ठहराता हूँ जिम्मेदार तुम्हे!
कभी भाग्यशाली मानता हूँ खुद को,
जब भी आते हैं उजाले जीवन में!
खुद पर ही इतराता हूँ जब भी,
आती है स्याह जिंदगी में.
तब उजाले सा देख पता हूँ तुम्हे,
पर
ईश्वर! मै तुम्हारी दुनिया से घृणा करता हूँ!!
पर न पाकर कोई आसरा,
जुड़ जाते है हाँथ!
खड़े करता हूँ सवाल तुम्हारे अस्तित्व पे,
कभी करता हु तरफदारी तुम्हारी!
अपनी असफलताओं पे
ठहराता हूँ जिम्मेदार तुम्हे!
कभी भाग्यशाली मानता हूँ खुद को,
जब भी आते हैं उजाले जीवन में!
खुद पर ही इतराता हूँ जब भी,
आती है स्याह जिंदगी में.
तब उजाले सा देख पता हूँ तुम्हे,
पर
ईश्वर! मै तुम्हारी दुनिया से घृणा करता हूँ!!
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